एन्टीरियर क्रूसिएट लीगामेंट इंजरी के इलाज में आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी एक कारगर प्रक्रिया*


सुनील मिश्रा नई दिल्ली :  पिछले कुछ वर्षों में एन्टीरियर क्रूसिएट लीगामेंट (एसीएल)  इंजरी के मामलों में वृद्धि देखे जाने की वजह से भारत में घुटने की बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है। एक हालिया अध्यन के अनुसार, 15 करोड़ से अधिक भारतीय घुटने की समस्याओं से परेशान हैं। एसीएल एक प्रकार का लीगामेंट है जो घुटने को स्थिर रखने में सहायक होता है। एन्टीरियर क्रूसिएट लीगामेंट इंजरी खासकर एथलीट्स और युवाओं के बीच आम है, इसीलिए इसे स्पोर्ट्स इंजरी में शामिल किया जाता है। क्रिकेट, बास्केटबॉल, सौकर, फुटबाल, बैडमिंटन, जिम आदि ऐसे खेल होते हैं जिसमें घुटने की चोटें सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं।
 वैशाली स्थित सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर के सीनियर हिप एंड नी रिप्लेसमेंट सर्जन, डॉक्टर अखिलेश यादव ने बताया कि, “यूवा जो ज्यादा खेलते हैं या जो मोटरसाइकिल तेज स्पीड में चलाते हैं, उनमें सबसे ज्यादा चोट लगने की या एक्सीडेंट होने की संभावनाएं होती हैं, जिसके कारण वे एसीएल इंजरी का शिकार बनते हैं। कई बार सीढ़ियों से चढ़ते-उतरते वक्त या बाथरूम में पैर फिसलने से भी एसीएल इंजरी हो जाती है। समस्या यह है कि ज्यादातर लोग इस इंजरी को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। वास्तव में यह लापरवाही उनपर बहुत भारी पड़ सकती है। चोट की शुरुआत में कुछ खास मुश्किल नहीं होती है लेकिन धीरे-धीरे लक्षण विकसित होने लगते हैं, जैसे कि चलते-चलते अचानक पैर लचक जाना, अचानक पैर मुड़ना, गिर जाना, घुटना अटक जाना आदि। यहां तक कि मरीज का पैर धीरे-धीरे पतला और कमजोर होने लगता है। इस प्रकार की चोटों का इलाज केवल आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी से ही संभव है। इसमें, सर्जन क्षतिग्रेस्त लीगामेंट को रिकंस्ट्रक्ट (पुनर्निर्माण) करता है। टेक्रनोलॉजी में प्रगति के साथ, आज एसीएल इंजरी का इलाज करना पहले से कहीं बेहतर हो गया है।”
 
आमतौर पर लोगों में डर बना हुआ है कि यदि उनके लीगामेंट क्षतिग्रस्त हो गए हैं तो उन्हें सर्जरी करानी पड़ेगी। जबकि असल में, कुछ मामलों में मरीज को बिना सर्जरी के भी ठीक किया जा सकता है। हालांकि फिजिकल थेरेपी से एसीएल की इंजरी को कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है लेकिन ऐसा उन लोगों में ही संभव है जो लोग कम सक्रिय होते हैं या कम खेल-कूद करते हैं। यह आपकी गतिविधि के लेवल पर निर्भर करता है कि आपको सर्जरी की जरूरत है या नहीं।
 
डॉक्टर अखिलेश यादव ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “एन्टीरियर क्रूसिएट लीगामेंट पुनर्निर्माण सर्जरी के दौरान क्षतिग्रस्त लिगामेंट को हटाकर उसकी जगह पर नए टिशू लगाए जाते हैं। ये टिशू जरूरत के हिसाब से मरीज के शरीर के ही किसी अंग से लेकर लगाए जाते हैं। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर घुटने के आसपास के टिशू का इस्तेमाल करते हैं जिससे सर्जरी आसानी से पूरी हो जाती है। यह एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें दूरबीन का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से सर्जरी में किसी प्रकार की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं रहती है। सर्जन इस दौरान फाइबर टेप और बायोडिग्रेडेबल स्क्रू (जिसमें कोई मेटल नहीं होता है) का इस्तेमाल करता है। चूंकि, इस प्रक्रिया में बहुत छोटा चीरा लगाना पड़ता है, इसलिए मरीज को न के बराबर दर्द होता है और रिकवरी भी तेज गति से होती है। इसलिए यह एक सुरक्षित और लोकप्रिय प्रक्रिया है।”

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