श्री सन्यासी संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हावी है भ्रष्टाचार, व्यवस्था को सुधारने की जरूरत, प्राचार्य से लेकर बाबू तक सब हैं भ्रष्ट
आजमगढ,(उत्तर प्रदेश)। आजमगढ जिले की तहसील सगडी में स्थित श्री सन्यासी संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में जिस कदर भ्रष्टाचार हावी है, उससे अब यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि शिक्षा के मंदिरों का उद्धार आखिर कैसे हो पाएगा? सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार खेलकूद सामग्री, लैब-लाइब्रेरी उपकरण और फर्नीचर खरीदी से लेकर अग्निशमन यंत्रों की खरीदी में भारी भ्रष्टाचार उजागर हो रहा है। इसके अलावा महाविद्यालय में नौकरी या अनुकंपा देने के मामले में भी भ्रष्टाचार जोरों पर है। महाविद्यालय की ऐसी कोई योजना नहीं है, जिसमें भ्रष्टाचार हावी न हो रहा हो। इसी तरह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के नाम पर फीस का घोटाला विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के संरक्षण में पहले से ही फल-फूल रहा है। हाल ही में समग्र शिक्षा की ओर से स्कूलों में भेजी गई पुस्तकों की राशि में भी एक उधा स्तर के अधिकारी का जबरदस्त खेल चला है। प्राचार्य,बाबू से लेकर उधा स्तर तक चल रहे भ्रष्टाचार के खेल में पूरी व्यवस्था में भारी बदलाव करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। विगत वर्षों में भ्रष्टाचार का पारा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा संचालित श्री सन्यासी संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय रजादेपुर, तहसील-सगडी, आजमगढ के अन्दर सालो से चल रहा प्रशासनिक भ्रष्टाचार खुलकर सामने आया है। विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से ज्ञात हुआ है कि श्री सन्यासी संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजादेपुर में एक महिला बाबू के पद पर कार्यरत है मगर आश्चर्य की बात है कि उस महिला की जगह पर उसका पति नौकरी कर रहा है। मासिक भुगतान के तौर पर धनराशि महिला के खाते में विभाग द्वारा भेजी जाती है एवं नौकरी पति कर रहा है। उपस्थिति रजिस्टर में महिला के फर्जी हस्ताक्षर भी उसका पति वर्षों से कर रहा है। महिला ने कई वर्षों से महाविद्यालय का मुंह तक नहीं देखा है और ना ही उसे महाविद्यालय के क्रियाकलापों के बारे में कोई जानकारी है। इसी तरह वर्तमान समय में महाविद्यालय में एक भी विद्यार्थी विद्या ग्रहण नहीं कर रहा है। महाविद्यालय के प्राचार्य एवं बाबू द्वारा विद्यार्थियों से संबंधित फर्जी आंकड़ा शिक्षा विभाग को भेज दिया जाता है। सरकार द्वारा विद्यार्थियों के लिए आए हुए ई-टेबलेट को भी प्राचार्य बाबू एवं अन्य शिक्षकों द्वारा केवल दूसरे फर्जी विद्यार्थियों के हाथ में टेबलेट देकर फोटो खिंचवा कर भेज दिया जाता है। इस संबंध में गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के निवासी आरटीआई कार्यकर्ता प्रेम प्रकाश त्रिपाठी द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत महाविद्यालय के भ्रष्टाचार से संबंधित कुछ सूचनाएं मांगी गई है, मगर प्रथम अपील दायर करने के बाद भी संबंधित महाविद्यालय द्वारा सूचना देना तो दूर कोई जवाब भी नहीं दिया गया है। जेसिका सीधा सा मतलब है कि उक्त महाविद्यालय में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। महाविद्यालय में ना तो कोई प्राचार्य शिक्षक एवं बाबू प्रतिदिन आता है और ना ही कोई विद्यार्थी विद्या ग्रहण करता है। उपस्थिति रजिस्टर में अपनी मर्जी के अनुसार सभी के हस्ताक्षर कर दिए जाते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार से इस महाविद्यालय के ऊपर लाखों रुपए हर महीने खर्च किए जा रहे हैं जिससे कि क्षेत्र के विद्यार्थियों को संस्कृत विद्या का उत्तम ज्ञान प्राप्त हो। मगर संबंधित महाविद्यालय के प्राचार्य सहित अन्य पदाधिकारी एवं कर्मचारी सरकार को पलीता लगा रहे हैं एवं टैक्स के रूप में आम जनता द्वारा सरकार को दी गई गाड़ी कमाई से मिले लाखों रुपए का मासिक भुगतान डकार रहे हैं। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि इस महाविद्यालय में कई वर्षों से किसी भी प्राचार्य, शिक्षक एवं पदाधिकारी का स्थानांतरण तक नहीं हुआ है। कई वर्षों से इसी महाविद्यालय में जमे हुए हैं। यह बिना किसी राजनीतिक एवं उच्चाधिकारियों के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। सभी नियमों को ताक पर रखकर बरसों से एक ही जगह पर कार्यरत होकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत महाविद्यालय द्वारा जानकारी ना देना यह संदेह पैदा करता है कि महाविद्यालय में गौर भ्रष्टाचार व्याप्त है एवं महाविद्यालय के प्राचार्य,पदाधिकारियों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों की योग्यता पर भी सवाल खड़ा करता है। सूचना अधिकार के तहत है जानकारी ना देकर इस महाविद्यालय में हो रहे सुनियोजित भ्रष्टाचार को छिपाया जा रहा है उत्तर प्रदेश सरकार एवं संबंधित उच्च शिक्षा विभाग को इस मामले को गंभीरता से लेकर जांच करनी चाहिए। संबंधित जांच में दोषी पाए गए सभी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार से संबंधित अधिनियमों के तहत मुकदमा दर्ज कर विभागीय कार्रवाई करनी चाहिए। जहां देश-विदेश में उत्तर प्रदेश सरकार की ईमानदारी एवं उपलब्धियों की प्रशंसा हो रही है वहीं दूसरी तरफ इस शिक्षा के मंदिरों में हो रहे भ्रष्टाचाओं से उत्तर प्रदेश की सरकार की छवि धूमिल हो सकती है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में क्या इन भ्रष्ट लोगों पर कार्यवाही होगी या फिर राजनीतिक हनक एवं धन-बल के चलते इन भ्रष्टाचार के मामलों को दबा दिया जाएगा।