हरमीत कालका के बोलने तथा इस्तीफे का 'जागो' इंतजार करेंगी : परमिंदर





सुनील मिश्रा नई दिल्ली :   सिख गुरदवारा प्रबंधक कमेटी के महासचिव व बादल अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका पर 'जागो' पार्टी का हमला थमता नजर नहीं आ रहा है। आटा बिक्री मामले के बाद अब 'जागो' कालका की पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर हमलावर हो गई हैं। पार्टी के महासचिव व मुख्य प्रवक्ता परमिंदर पाल सिंह ने आज मीडिया से बातचीत करते हुए कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जसवंत सिंह कालका के द्वारा 1985 से 1990 के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान श्री अकाल तख्त साहिब को चुनौती देने तथा इतिहासिक गुरुद्वारों पर हमले होने के बावजूद चुप रहने का दावा किया। साथ ही इस मामले में उनके पोते हरमीत कालका को जवाब देने की अपील करते हुए हरमीत कालका के इस्तीफे का इंतजार करने की बात भी कही। बादल दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल से भी 'जागो' ने सवाल पूछा है कि सरकारी सरप्रस्ती में कौम के खिलाफ भुगतने वाले जसवंत कालका के पोते हरमीत कालका को अकाली दल अपना अध्यक्ष कब तक बनाकर रखेगा ?

परमिंदर ने बताया कि जसवंत कालका ने 10 फरवरी 1987 को एक अंग्रेजी दैनिक में विज्ञापन देकर उस समय के पंजाब के मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला को श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी  जत्थेदार दर्शन सिंह के द्वारा तख्त का आदेश ना मानने के कारण तनखाहिया घोषित करने के मामलें में पंथक एकता को भारी चोट पहुँचाई थी। साथ ही तख्त साहिब द्वारा 9 फरवरी को दिए गए आदेश का विरोध किया था। क्योंकि अकाल तख्त साहिब से 3 फरवरी को सभी अकाली दलों के अध्यक्षों से इस्तीफे माँगे गए थे, ताकि एक अकाली दल बनाया जा सके। लेकिन बरनाला ने यह हुक्म नहीं माना था। जबकि बरनाला सरकार पर आतंकवाद के नाम पर श्री दरबार साहिब तथा अन्य गुरुद्वारों पर हमला करने के साथ ही सैकड़ों सिख नौजवानों को मारने के दोष जगजाहिर थे।  फिर भी एक बड़ी गुरुद्वारा कमेटी का अध्यक्ष होने के बावजूद जसवंत कालका ने अपने विज्ञापन में बरनाला के साथ अपनी मित्रता निभाते हुए कौम की भावनाओं के उल्ट जून 1984 में श्री दरबार साहिब पर हुए फौजी हमले के लिए सिखों को ही कथित तौर पर गलत बताने की गुस्ताखी की थी।

परमिंदर ने दावा किया कि अकाल तख्त साहिब के फैसले पर नुक्ताचीनी करने वाले जसवंत कालका ने तख्त साहिब को मुँह चिढ़ाने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की कथित शह पर सरबत खालसा भी बुलाया था। जिसमें केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह तख्त श्री पटना साहिब के जत्थेदार मौनी जी को लेकर साथ आए थे। लेकिन दिल्ली की संगत ने जसवंत कालका के सरबत खालसा को नकार दिया था, जिस वजह से बना हुआ लंगर बड़ी मात्रा में जसवंत कालका ने कथित तौर पर यमुना में जाकर फैंका था। इसके साथ ही जसवंत कालका के समय गुरुद्वारा बंगला साहिब में चली गोली में 3 सिख मारे गए, 140 गिरफ्तार हुए थे, गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के बाहर एक सिख को पीट-पीट कर मारा गया था, गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब से यात्रियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था तथा गुरु तेग बहादर साहिब के शहीदी पर्व पर नगर कीर्तन पर रोक लगी थी। लेकिन जसवंत कालका सरकार और पुलिस के खिलाफ कुछ नहीं कर पाए थे। जिस प्रकार दादा ने अकाल तख्त के हुक्म की अवहेलना की थी, उसी तरह पोते ने भी नकली नगर कीर्तन मामले में एकत्र हुए माया और गहनों का सार्वजनिक हिसाब ना देकर किया है। जिस प्रकार दादा ने लंगर को फैंका था, उसी तरह पोता भी लंगर को बेचने, बर्बाद करने से लेकर बोली लगवाकर प्रायोजक ढूँढने में लीन है। इस मौके कमेटी सदस्य चमन सिंह, जागो की धर्मप्रचार प्रमुख तरविंदर कौर खालसा, नेता जतिंदर सिंह साहनी, जसवंत सिंह, विक्रम सिंह, सतनाम सिंह, बौबी धनौआ तथा जसमीत सिंह आदि मौजूद थे।

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