दीपू चन्द्र दास की नृशंस हत्या — बांग्लादेश में मानवाधिकार एवं न्याय की चौंकाने वाली विफलता
सुनील मिश्रा नई दिल्ली (22 दिसम्बर 2025) — 18 दिसम्बर 2025 को बांग्लादेश के मयमनसिंह जनपद के भालुका क्षेत्र में रहने वाले 25 वर्षीय हिन्दू परिधान-कारखाना कर्मी दीपू चन्द्र दास की कथित एवं अप्रमाणित ईशनिन्दा के आरोपों के आधार पर एक उन्मादी भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। भीड़ ने उसे निर्दयता से मारा, उसके निर्जीव शरीर को एक वृक्ष से बाँधा तथा अग्नि के हवाले कर दिया, जिससे उसका दग्ध शव सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित रहा। यह भयावह घटना राजनीतिक कार्यकर्ता शरीफ उस्मान हादी की मृत्यु के उपरान्त उत्पन्न राष्ट्रव्यापी अशांति के वातावरण में घटित हुई।
प्रारम्भिक पुलिस प्रतिवेदनों के अनुसार, लगभग 140–150 व्यक्तियों की एक उन्मत्त भीड़ ने दीपू चन्द्र दास पर उस समय आक्रमण किया, जब यह अफवाह फैलाई गई कि उसने धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है। इन आरोपों के समर्थन में कोई भी विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं है तथा पीड़ित के परिजनों ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है। इसके बावजूद, भीड़ द्वारा की गई यह लिंचिंग 21वीं शताब्दी के सभ्य समाज के लिए घोर लज्जा का विषय है।
यह लिंचिंग कोई अपवाद नहीं है। यह हिन्दुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ती और अत्यन्त चिन्ताजनक हिंसा-प्रवृत्ति का ही एक भाग है, जो अगस्त 2024 में पूर्ववर्ती सरकार के अपदस्थ होने के पश्चात् और अधिक तीव्र हुई है। विश्वसनीय प्रतिवेदनों के अनुसार, वर्ष 2024 में बांग्लादेश में हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा की लगभग 2,200 घटनाएँ दर्ज की गईं, जो वर्ष 2023 की 302 तथा वर्ष 2022 की मात्र 47 घटनाओं की तुलना में अत्यधिक वृद्धि को दर्शाती हैं। इन घटनाओं में शारीरिक हमले, धमकियाँ, मन्दिरों का अपवित्रीकरण तथा भीड़-आधारित आक्रमण सम्मिलित हैं।
इसके अतिरिक्त, अल्पसंख्यक अधिकार संगठनों ने अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के मध्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध 2,400 से अधिक हिंसक घटनाओं का प्रलेखन किया है, जिनमें हत्या, बलात्कार, लूटपाट तथा मन्दिरों पर हमले शामिल हैं। जुलाई 2025 में गंगाचारा क्षेत्र के हिन्दू मुहल्ले पर हुए हमले में घरों को लूटा गया, तोड़ा-फोड़ा गया और अनेक परिवारों को भय के कारण पलायन के लिए विवश होना पड़ा। यह हिंसा आकस्मिक नहीं है, बल्कि राज्य संरक्षण की व्यापक एवं प्रणालीगत विफलता को प्रतिबिम्बित करती है, जो भीड़ों को दण्डहीनता के साथ हिंसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
इसके विपरीत, जहाँ अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने कट्टर इस्लामवादी छात्र नेता उस्मान हादी की मृत्यु की तीव्र निन्दा की है, वहीं दीपू चन्द्र दास की लिंचिंग पर किसी भी प्रमुख मानवाधिकार संस्था की ओर से एक भी स्पष्ट निन्दा-वक्तव्य सामने नहीं आया है। यह चयनात्मक आक्रोश वैश्विक मानवाधिकार विमर्श में व्याप्त दोहरे मानदण्ड को उजागर करता है। मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं, किसी भी प्रकार से समझौते योग्य नहीं। हत्या के सम्मुख मौन रहना सहभागिता के समान है।
हम सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा नागरिक समाज से आह्वान करते हैं कि वे—
• दीपू चन्द्र दास की लिंचिंग तथा बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध समस्त हिंसा की स्पष्ट एवं बिना शर्त निन्दा करें;
• दोषियों एवं उन्हें संरक्षण देने वालों के विरुद्ध स्वतंत्र जाँच तथा उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की माँग करें;
• और भीड़-हिंसा एवं झूठे ईशनिन्दा आरोपों से संवेदनशील समुदायों की रक्षा हेतु सार्थक विधिक सुधारों की माँग करें।
डॉ प्रेरणा मल्होत्रा
अध्यक्ष
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